नेहा

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लेखनी प्रतियोगिता -04-Apr-2022 किताब

मै किताब हुँ , 

जीवन सवाँर देता हुँ,
मुझसे जो प्यार करता है उसका,
तकदिर सुधार देता हुँ,
         वो जो मुझसे रूठते है,
 मै भी उनसे रूठ जाता हुँ,
जो ध्यान नही 
देते मुझपे,
मै भी उन्हे भूल जाता हुँ,
कोई एकबार भी मन लगा के पढ ले,
तब मै उचित इनाम देता हुँ,
मै किताब हुँ ,
जीवन सवाँर देता हुँ,
मुझसे जो प्यार करता है,
उसका तकदिर सुधार देता हूँ ।
          याद है न वो कालिदास,
         जकड़े हुए था जिसे मोहपाश,
साँप को समझ के रस्सी,
चुपके से मिलने आया था,
पत्नी ने दुत्कार कर ,
कितना उन्हे निचा दिखाया धा,
तब बड़ी करूणा से उन्होंने माँ सरस्वति को पुकारा था,
कालिभक्त का किताब ही बस सहारा था,
सुन के उनकी पुकार ,
विद्याधन दिया अपार। 
मै किताब हुँ,
जीवन सवाँर देता हुँ,
मुझसे जो प्यार करता है उसका तकदिर सुधार देता हुँ,
              याद है ना वो तुलसीदास,
              नयन ना था,
             मगर रचा इतिहास,
कभी मै नेत्र बन के रोशनी देता हुँ,
कभी मै राह बन के मंजिल देता हुँ,
एक ही विनती है सबसे बार-बार,
किताबों से इश्क करके ,
करते रहो रोज दिदार ।
मै किताब हुँ ,
जीवन सवाँर देता हुँ,
मुझसे जो प्यार करता है ,
उसका तकदिर सुधार देता हुँ ।
       याद है ना कल्पना चावला,
      उड़ान देख जग हुआ था बाबला,
लड़कियो के बिच मिसाल बन गई,
अफसोस कि वो ख्याल बन गई,
जगमें फिर भी अमर रहेगा उनका नाम,
विद्याधन से मुमकिन है हर काम ।
मै किताब हुँ,
जीवन सवाँर देता हुँ,
मुझसे जो प्यार करते है,
उसका तकदिर सुधार देता हुँ ।

 

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12 Comments

Reyaan

06-Apr-2022 10:02 AM

👌👏🙏🏻

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Shnaya

06-Apr-2022 02:18 AM

Very nice

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K.K.KAUSHAL (Advocate)

05-Apr-2022 08:04 PM

शानदार, बधाई हो

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